इटावा। इटावा जिला जेल में उम्र कैद की सजा काट रही चंबल की दस्यु सुंदरी कुसमा नाइन का बीमारी के चलते निधन हो गया है।
उत्तर प्रदेश की इटावा जिला जेल में सजा काट रही पूर्व डकैत कुसमा नाइन की उपचार के दौरान लखनऊ पीजीआई में आखिरी सांस ली। एक माह पूर्व तबियत खराब होने पर जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। प्राथमिक उपचार के बाद कुसमा को सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी रैफर किया गया। जहां डॉक्टरों की टीम ने उसको लखनऊ पीजीआई रेफर कर दिया गया था। जहां उसका लगातार उपचार चल रहा था। करीब डेढ़ माह उपचार चलने के बाद लखनऊ पीजीआई में कुशमा 9 ने उपचार के दौरान उसका निधन हो गया। इटावा जिला अधीक्षक ने मामले की पुष्टि करते हुए बताया है कि कुशमा इटावा जिला जेल में लंबे समय से बंद थी बीमारी के चलते उसकी उपचार के लिए भेजा गया था लेकिन बीते शनिवार को उसकी मौत हो गई। कुसमा नाइन इटावा जेल में करीब 20 वर्ष से आजीवन की सजा काट रही थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आतंक का पर्याय रहे कुख्यात डकैत रामआसरे उर्फ फक्कड़ और उसकी सहयोगी पूर्व डकैत सुंदरी कुसमा नाइन सहित पूरे गिरोह ने मध्यप्रदेश के भिंड जिले के दमोह पुलिस थाने की रावतपुरा चौकी पर जून 2004 समर्पण कर दिया था। भिंड के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक साजिद फरीद शापू के समक्ष गिरोह के सभी सदस्यों ने बिना शर्त समर्पण किया था। फक्कड़ बाबा पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक लाख और मध्य प्रदेश पुलिस ने 15 हजार रुपये का इनाम घोषित कर रखा था। कुसमा नाइन पर उत्तर प्रदेश ने 20 हजार और मध्य प्रदेश ने 15 हजार रुपये का इनाम घोषित किया हुआ था। गिरोह ने उत्तर प्रदेश में करीब 200 से अधिक और मध्य प्रदेश में 35 अपराध किए थे। कानपुर निवासी फक्कड़ की सहयोगी कुसमा नाइन जालौन जिले के सिरसाकलार की रहने वाली है। समर्पण करने वाले गिरोह के अन्य सदस्यों में मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का राम चंद वाजपेयी, इटावा के संतोष दुबे, कमलेश वाजपेयी, भूरे सिंह यादव और मनोज मिश्रा, कानपुर का कमलेश निषाद और जालौन का भगवान सिंह बघेल शामिल रहे। जिसके बाद से वह इटावा जिला जेल में सजा काट रही थी। इस समर्पण के पीछे किसी ने मध्यस्थ की भूमिका नहीं निभाई। फक्कड़ बाबा और उसके गिरोह ने अपनी इच्छा से आत्मसमर्पण किया था। फक्कड़ बाबा गिरोह ने कई विदेशी हथियार भी पुलिस को सौंपे थे। इनमें अमेरिका निर्मित 306 बोर की तीन सेमी-आटोमेटिक स्प्रिंगफील्ड राइफलें, एक आटोमेटिक कारबाइन, बारह बोर की एक डबल बैरल राइफल और कुछ दूसरे हथियार शामिल रहे। कुसमा नाइन की क्रूरता के किस्से काफी मशहूर बताए जाते है। मई 1981 में फूलन देवी डाकू लालाराम और श्रीराम से अपने गैंग रेप का बदला लेने के लिए बेहमई गांव गई। दोनों वहां नहीं मिलते, लेकिन फिर भी फूलन ने 22 ठाकुरों को लाइन से खड़ा करके गोली मार दी थी। इस घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी। इस कांड के बाद लालाराम और उसकी माशूका बन चुकी कुसुमा बदला लेने के लिए उतावले होने लगे थे। उधर, बेहमई कांड के एक साल बाद यानी साल 1982 में फूलन आत्मसमर्पण कर देती है। लालाराम और कुसुमा का गैंग एक्टिव रहता है। साल 1984 में कुसुमा फूलन देवी के बेहमई कांड का बदला लेती है। फूलन के दुश्मन लालाराम के प्रेम में डूबी कुसुमा अपनी गैंग के साथ मई अस्ता गांव पहुंचती है। उस गांव के 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया। 1996 में इटावा जिले के भरेह इलाके में कुसुमा नाइन ने संतोष और राजबहादुर नाम के मल्लाहों की आंखें निकाल ली थीं और उन्हें जिन्दा छोड़ दिया था। कुसुमा की क्रूरता के कारण डकैत उसे यमुना-चंबल की शेरनी कह कर बुलाने लगे थे। कुसुमा जिन लोगों का अपहरण करती उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती थी। चूल्हे में लगी जलती हुई लकड़ी को निकाल कर उनके बदन को जलाती थी। जंजीरों से बांध कर उन्हें हंटर से मारा करती थी।