होली सामाजिक समरसता का रंगोत्सव : डॉ नंदकिशोर साह

इटावा।होली भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो रंगों, प्यार और खुशी का प्रतीक है। यह त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च के महीने में पड़ता है। होली का इतिहास प्राचीन है, और इसके पीछे कई कथाएं और पौराणिक कहानियां हैं।

होली उत्साह और उमंग से भरा त्योहार और उत्सव है। विष्णु भक्त इस दिन व्रत भी रखते हैं। होली से एक दिन पहले होलिका दहनलकी जाती है। इसके लिए लोग महीने भर पहले से तैयारी में जुटे रहते हैं। सामूहिक रूप से लोग लकड़ी, उपले आदि इकट्ठा करते हैं और फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन संध्या काल में भद्रा दोष रहित समय में होलिका दहन किया जाता है। होली जलाने से पूर्व उसकी विधि-विधान सहित पूजा की जाती है और अग्नि एवं विष्णु के नाम से आहुति दी जाती है।
होलिका दहन के दिन पवित्र अग्नि के चारों ओर लोग नृत्य करते हैं और लोकगीत का आनंद लेते हैं। इस दिन राधा-कृष्ण की लीलाओं एवं ब्रज की होली की धुन गलियों में गूंजती रहती है और लोग आनंद-विभोर रहते हैं। होलिका दहन के दिन लोग अपने-अपने घरों में खीर और मालपुआ बनाकर अपनी कुलदेवी और देवता को भोग लगाते हैं।
होली का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। यह त्योहार लोगों को एक साथ लाता है, और उन्हें अपने मतभेदों को भूलने और एक दूसरे के साथ प्यार और खुशी के साथ रहने का अवसर प्रदान करता है। होली के दिन लोग अपने घरों को रंगोली से सजाते हैं, और अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर रंगों का त्योहार मनाते हैं।
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। ब्रज की होली, मथुरा की होली, वृंदावन की होली, बरसाने की होली, काशी की होली पूरे भारत में मशहूर है। आज भी ब्रज की होली सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। लठमार होली जो कि बरसाने की है वो भी काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं पुरुषों को लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी तरह मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाते हैं।
यह मस्ती भरा पर्व मिलजुल कर मनाना चाहिए। बच्चों को भी सावधानी रखनी चाहिए। बच्चों को बड़ों की निगरानी में ही होली खेलना चाहिए। दूर से गुब्बारे फेंकने से आंखों में घाव भी हो सकता है। रंगों को भी आंखों और अन्य अंदरूनी अंगों में जाने से रोकना चाहिए। होली एक मेल, एकता, प्रेम, आनंद एवं खुशी का त्योहार है। इसमें हम सभी को छोटे-बड़े, भाई-बहन, आस-पड़ोस के साथ मिलकर रहने का संकल्प लेना चाहिए। होली खेलते समय अधिकतर लोग रंगों का प्रयोग करते हैं लेकिन हमें उनके स्थान पर गुलाल का प्रयोग करना चाहिए। रंग आंखों एवं त्वचा के लिए बहुत हानिकारक होता है लेकिन गुलाब का इतना नकारात्मक प्रभाव नहीं होता है और गुलाल से शारीरिक-मानसिक नुकसान नहीं होता है। आजकल अच्छी क्वॉलिटी के रंगों का प्रयोग नहीं होता और त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले रंग खेले जाते हैं। यह सरासर गलत है। इस मनभावन त्योहार पर रासायनिक लेप व नशे आदि से दूर रहना चाहिए। प्रेम भाव से ही होली खेलनी चाहिए। कुछ जागरूक लोग आपको जरूरी सलाह भी देंगे, इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए। किसी के साथ जोर जबरदस्ती कर रंग अथवा गुलाल नहीं लगाना चाहिए। विभिन्न रंगों का यह रंगोत्सव पर्व होली एकता का संदेश देता है।
लोग एक दूसरे को प्रेम-स्नेह की गुलाल लगाते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, लोकगीत गाये जाते हैं और एक दूसरे का मुँह मीठा करवाते हैं। होली को प्रकृति और प्रेम का पर्व भी माना जाता है क्योंकि यह पर्व हमें प्रकृति के करीब लेकर जाता है। होली को रंगोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। सभी घरों में तरह तरह के पकवान बनाया जाता है। लोग खासतौर से बने गुजिया, पापड़, हलवा, आदि खाते हैं। पूरे देश भर में उल्लास के साथ होली मनाया जाता है। होली का त्योहार लोग आपस में मिलकर, गले लगकर और एक दूसरे को रंग लगाकर मनाते हैं। इस दौरान धार्मिक और फागुन गीत भी गाये जाते हैं। होली सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, जिसके रंग अनेकता में एकता को दर्शाते हैं।

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