इटावा।थाना ऊसराहार के सरसई नावर में स्थित श्री सतगुरु हॉस्पिटल एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह बेहद दुखद और गुस्सा भड़काने वाली है। एक गरीब परिवार, जो अपने नवजात बच्चे के जन्म की खुशी में डूबने की तैयारी कर रहा था, अस्पताल की कथित लापरवाही की भेंट चढ़ गया। नगला गुजराती के निवासी जगदीश चंद्र और उनके परिवार का दर्द अब सिर्फ उनकी निजी त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा कर रहा है। स्थानीय लोग गुस्से में हैं, और सभी की नजरें मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) बीके सिंह पर टिकी हैं कि क्या वह इस मामले में सख्त कार्रवाई करेंगे, या यह घटना भी फाइलों में दबकर रह जाएगी।
एक परिवार का टूटा सपना
जगदीश चंद्र अपनी गर्भवती बहू को लेकर श्री सतगुरु हॉस्पिटल पहुंचे थे। परिवार को भरोसा था कि उनकी बहू और होने वाला बच्चा सुरक्षित हाथों में है। प्रसव की प्रक्रिया शुरू होने पर डॉक्टर ने जटिलताओं का हवाला देते हुए सी-सेक्शन (ऑपरेशन) की सलाह दी। गरीब परिवार ने बिना किसी सवाल के डॉक्टर की बात मानी और बहू को ऑपरेशन थिएटर में भेज दिया। लेकिन जो हुआ, वह किसी भी परिवार के लिए सबसे बड़ा दुःस्वप्न था। ऑपरेशन के दौरान नवजात की मौत हो गई।
परिजनों का आरोप है कि यह मौत डॉक्टरों की घोर लापरवाही और अस्पताल के घटिया मानकों का नतीजा है।
जगदीश चंद्र के एक रिश्तेदार ने गुस्से में कहा, “हमने डॉक्टरों पर भरोसा किया, लेकिन उन्होंने हमारे बच्चे को मार डाला। अगर ऑपरेशन थिएटर में जरूरी सुविधाएं नहीं थीं, तो ऑपरेशन क्यों किया गया? कोई अनुभवी डॉक्टर वहां था ही नहीं!” परिजनों का यह भी कहना है कि ऑपरेशन के बाद उन्हें साफ-साफ नहीं बताया गया कि बच्चे की मौत कैसे हुई। अस्पताल का स्टाफ जवाब देने के बजाय टालमटोल करता रहा, जिससे परिवार का गुस्सा और भड़क गया।
श्री सतगुरु हॉस्पिटल का काला सच
स्थानीय लोगों के मुताबिक, श्री सतगुरु हॉस्पिटल पहले भी अपनी खराब सेवाओं और लापरवाही के लिए कुख्यात रहा है। कई मरीजों ने शिकायत की है कि अस्पताल में न तो पर्याप्त प्रशिक्षित स्टाफ है, न ही आधुनिक चिकित्सा उपकरण। फिर भी, यह अस्पताल आसपास के गरीब और अनजान लोगों को अपनी ओर खींचता है। इसका कारण है सरकारी अस्पतालों में लंबी कतारें और निजी अस्पतालों की मोटी फीस, जो गरीब परिवारों की पहुंच से बाहर है। एक स्थानीय निवासी ने गुस्से में कहा, “यह अस्पताल गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाता है। न कोई जवाबदेही, न कोई डर। ऐसे अस्पतालों को बंद करना चाहिए।”
इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में आक्रोश फैल गया है। कई लोग अस्पताल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
सीएमओ बीके सिंह पर टिकी निगाहें
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जांच सिर्फ खानापूरी साबित होगी, जैसा कि इटावा में पहले कई मामलों में देखा गया है स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “ऐसे मामलों में कार्रवाई करना आसान नहीं होता। कई बार अस्पताल मालिकों के राजनीतिक रसूख और दबाव के चलते मामले रफा-दफा कर दिए जाते हैं।
इटावा में पहले भी कई बार
ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जहां निजी अस्पतालों की लापरवाही से मरीजों की जान गई, लेकिन ज्यादातर मामलों में जांच का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।
परिवार का दर्द: एक उम्मीद का अंत
जगदीश चंद्र और उनका परिवार इस सदमे से उबर नहीं पा रहा है। परिवार की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है, और अब यह भावनात्मक आघात उनके लिए असहनीय हो गया है। जगदीश चंद्र ने रोते हुए कहा, “हमारा बच्चा हमारी उम्मीद था। हमने सब कुछ दांव पर लगाकर अपनी बहू को इस अस्पताल में भर्ती किया, लेकिन सब बेकार गया।
कब तक चलेगा यह सिलसिला
यह मामला अब सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का प्रतीक बन गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक निजी अस्पतालों पर सख्त नियम लागू नहीं किए जाते और उनकी नियमित जांच नहीं होती, तब तक ऐसी घटनाएं रुकने वाली नहीं हैं। एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने बताया, “ग्रामीण इलाकों में निजी अस्पतालों की मनमानी इसलिए चल रही है, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव है। गरीब लोग मजबूरी में इन अस्पतालों का रुख करते हैं और यही उनकी सबसे बड़ी गलती बन जाती है।
सीएमओ के सामने चुनौती
सीएमओ बीके सिंह के सामने अब एक बड़ा मौका है। अगर वह इस मामले में तेजी और पारदर्शिता के साथ कार्रवाई करते हैं, तो न सिर्फ दोषियों को सजा मिलेगी, बल्कि अन्य निजी अस्पतालों के लिए भी एक मिसाल कायम होगी। लेकिन अगर जांच में ढील बरती गई, तो यह जनता के भरोसे पर एक और चोट होगी। स्थानीय लोग और परिवार इस मामले में कड़ी नजर रखे हुए हैं।