इटावा। भारतीय जनता पार्टी के स्थापना के बाद से लेकर अब तक जो 12 से अधिक जिलाध्यक्ष बने हैं। इनमें ब्राह्मण वर्ग से ही सर्वाधिक पांच लोग जिलाध्यक्ष बने हैं। बावजूद इसके अभी भी इस समाज के ही लोगों ने जिलाध्यक्ष बनने के लिए सबसे ज्यादा आवेदन किए हैं। इनमें दो ऐसे नेता हैं जो पूर्व में भी जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। इनमें एक 70 वर्ष से अधिक उम्र के हैं। जबकि दूसरे कानपुर- बुंदेलखंड क्षेत्र में उपाध्यक्ष हैं, लेकिन फिर भी फिर से जिलाध्यक्ष बनने का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं।
क्या फिर से किसी ब्राह्मण नेता को जिलाध्यक्ष बनाया जाएगा, ऐसा लगता तो नहीं है। लेकिन यह भाजपा है जहां ज्यादा उछलकूद करने वाले को बाहर का रास्ता दिखाया जाता रहा है।
पार्टी के जो हालात हैं खासकर निकाय चुनाव व लोकसभा चुनाव में हुई पार्टी की पराजय के बाद पार्टी को जातिवाद से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है।
पांच ब्राह्मण, चार पिछड़े (तीन लोधी राजपूत व एक यादव) हैं। दो क्षत्रिय व एक-एक वैश्य व सुनार वर्ग के नेता भाजपा के जिलाध्यक्ष बन चुके हैं। वैश्य वर्ग के पूर्व जिलाध्यक्ष के पुत्र भी खुद को इस दौड़ में मान रहे हैं। जो जिला संगठन में पदाधिकारी हैं।
वैसे पार्टी को खुद से फैसले लेने वाले जिलाध्यक्ष का चुनाव करने पर ध्यान देने की जरूरत है। पार्टी के नेताओं का हाल यह है जो निकाय चुनाव में टिकट मांग रहे थे। वही 2022 के विधानसभा चुनाव में भी टिकट मिलने की कोशिशों में लगे थे। यह बात अलग है कि किसी नए चेहरे पर विचार नहीं किया गया। ऐसा ही निकाय चुनाव में पार्टी को जिले में मिली करारी हार के बाद भी जिलाध्यक्ष बदले जाने की अटकलों ने जोर पकड़ा। लेकिन पार्टी ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जिलाध्यक्ष बदलने का जोखिम तो नहीं लिया, जिसका खामियाजा उसे इटावा सुरक्षित लोकसभा सीट गंवाकर भुगतना पड़ा। कहीं ऐसी स्थिति का सामना 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को न करना पड़े। ऐसे में पार्टी के केंद्रीय खासकर प्रदेश नेतृत्व को 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किसी निर्विवाद नेता को जिलाध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। ताकि जीत की आधारशिला रखी जा सके।
भाजपा को जीत की आधारशिला रखने वाले जिलाध्यक्ष की है जरूरत
