इटावा । जनपद के गुलशन ऋषि यादव (युवा हिंदी साहित्यकार और लेखक) ने बताया आज समाज में एक खतरनाक प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है, जहाँ शिक्षा का महत्व लगातार कम होता जा रहा है और त्वरित प्रसिद्धि व धन कमाने की अंधी दौड़ में युवा पीढ़ी अपने भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। यह सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि हमारे समाज के लिए एक गंभीर संकट का संकेत है।
आज के दौर में, जब ज्ञान और कौशल ही सफलता की कुंजी हैं, हमारे बच्चे “पैसे के पीछे” इस कदर भाग रहे हैं कि वे शिक्षा की नींव को ही नजरअंदाज कर रहे हैं। उन्हें डिग्रियाँ नहीं, बल्कि “अधिक फॉलोअर्स” चाहिए। उन्हें किताबों में लिखे ज्ञान की बजाय, Dream11 और PUBG जैसे ऑनलाइन गेम्स में रातोंरात करोड़पति बनने के सपने भा रहे हैं। यह स्थिति बच्चों को एक ऐसे दलदल में धकेल रही है, जहाँ उनका भविष्य पूरी तरह से अंधकारमय होता जा रहा है।
सोशल मीडिया, खासकर इंस्टाग्राम और रील्स का बढ़ता क्रेज, बच्चों को वास्तविक जीवन से दूर कर रहा है। 12-13 साल के मासूम बच्चे, जिन्हें अपनी पढ़ाई और खेलकूद पर ध्यान देना चाहिए, वे घंटों रील्स बनाने और वायरल होने की चाहत में लगे हुए हैं। यह सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक लत है जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही है। उन्हें आभासी दुनिया की चमक-धमक इतनी मोहक लग रही है कि वे अपनी “रियल लाइफ” की जिम्मेदारियों और संभावनाओं से कटते जा रहे हैं।
यह सिर्फ व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है। अगर हमारी युवा पीढ़ी शिक्षा से विमुख होकर केवल त्वरित लाभ और सतही प्रसिद्धि के पीछे भागेगी, तो हम कैसे एक सशक्त और प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण कर पाएंगे? आज आवश्यकता है कि हम इस गंभीर स्थिति को पहचानें और इसके खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों। अभिभावकों को अपने बच्चों को सही दिशा दिखाने की जिम्मेदारी लेनी होगी। शिक्षकों को शिक्षा के वास्तविक मूल्य को फिर से स्थापित करना होगा। और सरकार को भी ऐसी नीतियों को बढ़ावा देना होगा जो शिक्षा को प्राथमिकता दें और बच्चों को इन भटकाने वाली प्रवृत्तियों से दूर रखें।
क्या हम अपने बच्चों को इस रील की दौड़ में खो जाने देंगे, या उन्हें शिक्षा की शक्ति से सशक्त कर एक उज्जवल भविष्य की ओर ले जाएंगे? यह प्रश्न आज हम सभी से पूंछ रहा है, और इसका उत्तर ही हमारे समाज का भविष्य तय करेगा।
रील की दौड़ में खोता बचपन: शिक्षा की अनदेखी और भविष्य का अंधकार : गुलशन ऋषि यादव
