निजी अस्पताल में जच्चा-बच्चा की मौत,हंगामा लापरवाही का दर्दनाक अंजाम,स्वास्थ्य विभाग के मौन पर उठे सवाल

इटावा। जनपद के इकदिल थाना क्षेत्र में नेशनल हाईवे-2 पर चल रहे निजी अस्पताल में इलाज में लापरवाही की कीमत एक महिला और उसके नवजात को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। प्रसव के बाद पहले नवजात ने दम तोड़ा और फिर कुछ ही घंटों में मां की भी मौत हो गई। इस हृदयविदारक घटना के बाद गुस्साए परिजनों ने अस्पताल में जमकर हंगामा किया। मृतका के पति ने अस्पताल प्रबंधन पर घोर लापरवाही का आरोप लगाया है। मूल रूप से बकेवर के ग्राम टूटा उझियानी निवासी धर्मेंद्र कुमार ने मंगलवार तड़के अपनी गर्भवती पत्नी दिव्यांशु देवी (30) को प्रसव पीड़ा होने पर पिलखर के पास स्थित गुरु जी हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। हॉस्पिटल स्टाफ ने नार्मल डिलीवरी का भरोसा दिया और कुछ देर में दिव्यांशु ने एक नवजात को जन्म दिया। लेकिन इसके तुरंत बाद अस्पताल ने शिशु की धड़कन कम होने की बात कहकर उसे ICU में शिफ्ट करने को कहा। परिजन नवजात को शहर ले गए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इधर, मां को लगातार रक्तस्राव होने लगा। एक घंटे तक कोई सही इलाज नहीं हुआ, न ही विशेषज्ञ डॉक्टर नजर आए। आखिरकार हालत बिगड़ने पर उसे दूसरे नर्सिंग होम रेफर किया गया, लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। जच्चा और बच्चा दोनों की मौत की खबर से परिवार में कोहराम मच गया। रोते-बिलखते स्वजन जब दोबारा अस्पताल लौटे, तो वहां लापरवाही और अनदेखी को लेकर आक्रोश फूट पड़ा। भारी हंगामा हुआ, जिसके बाद थाना इकदिल पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। पीड़ित पति धर्मेंद्र का आरोप है कि प्रसव स्टाफ नर्स पूजा सोनी से कराया गया। अगर वहां कोई स्त्री रोग विशेषज्ञ होता और सही इलाज समय पर होता, तो आज उसकी पत्नी और नवजात जिंदा होते। इकदिल थाना प्रभारी विक्रम सिंह चौहान ने बताया कि शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है और भीड़ को शांत करा दिया गया। अभी तक किसी की ओर से तहरीर नहीं दी गई है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. बी.के. सिंह ने बताया कि यदि पीड़ित परिवार लिखित शिकायत देता है तो जांच कर कार्रवाई की जाएगी।यह कहकर विभाग ने पल्ला झाड़ लिया।

जनपद में आए दिन ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही है और जनपद ऐसे संदिग्ध प्रकार के निजी अस्पताल की संख्या भी बढ़ती जा रही है जहां जिस डॉक्टर के नाम से रजिस्ट्रेशन कराए जाते हैं वहां वो डॉक्टर कभी नहीं होते हैं बल्कि उनके स्थान पर झोलाछाप डॉक्टर या कोई नर्सिंग स्टाफ के माध्यम से पूरा निजी अस्पताल चलता है।

इसके अलावा इन अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय आशाओं और एम्बुलेंस चालकों लुभाकर उन्हें एक पैकेज दिया जाता है आप मरीज को अस्पताल में भेजिए या लाइए आपको आपका हिस्सा मिल जाएगा । जिसकी जानकारी पूरे स्वास्थ्य विभाग को होने के बाबजूद कोई कार्यवाही नहीं होती है। आखिरी उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे निजी अस्पतालो पर कब कार्यवाही कराएगा और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कब अपना कार्य ईमानदारी से करेंगे।

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