कहते हैं आज भी कालीबांह मंदिर में अश्वत्थामा पूजा करने आते हैं 

इटावा। उत्तर प्रदेश के इटावा में यमुना नदी के किनारे स्थित कालीबांह मंदिर को ‘बीहड़ वाली मैया’ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना बताया जाता है और यह देवी भक्तों की गहरी आस्था का केंद्र है।
​मंदिर में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की प्रतिमाएं एक साथ स्थापित हैं। मंदिर का नाम ‘कालीबांह’ पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा है। मंदिर के पुजारी सचिन गिरी के अनुसार, यहां सती माता की बांह गिरी थी, जिसके कारण इसे यह नाम मिला।
​पुजारी सचिन गिरी, जो मंदिर में पूजा-पाठ करने वाली छठी पीढ़ी के सदस्य हैं, ने बताया कि लगभग पांच सौ साल पहले माता ने स्वप्न में यहां अपनी पिंडी रूप में होने का अहसास कराया था। बाद में तीन पिंडियां मिलीं, जिन्हें यमुना में विसर्जित कर दिया गया था, लेकिन वे उसी स्थान पर फिर से प्रकट हुईं। तब से, इन पिंडियों को चेहरा बनाकर मंदिर में स्थापित किया गया।
​अश्वत्थामा करते हैं मां की पूजा
​मंदिर से जुड़ी एक और अनोखी मान्यता यह है कि महाभारत काल के अश्वत्थामा हर सुबह सबसे पहले मां काली की पूजा करते हैं। पुजारी सचिन गिरी ने बताया कि उनके पूर्वज बताया करते थे कि मंदिर खुलने पर ताजे फूल चढ़े मिलते थे। हालांकि, कुछ सालों से ऐसा देखने को नहीं मिला है, लेकिन मंदिर खुलने पर सामान बिखरा हुआ और पानी के छींटे पाए जाते हैं, जो किसी अदृश्य शक्ति की उपस्थिति का संकेत देते हैं।
​नवरात्रि के दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, और यहां एक मेले का भी आयोजन होता है। इस दौरान जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं। पास ही पहाड़ी पर भैरव बाबा का एक और मंदिर है, जहां भक्त माता के दर्शन के बाद भैरव बाबा के भी दर्शन करते हैं।

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